देश की खातिर|| राम प्रसाद बिस्मिल
देश की ख़ातिर (काव्य)
देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर हो।
हाथ में हो हथकड़ी, पैरों पड़ी जंज़ीर हो ॥
शूली मिले फाँसी मिले या कोई भी तदबीर हो।
पेट में खंज़र दुधारा या जिगर में तीर हो ॥
आँख ख़ातिर तीर हो मिलती गले शमशीर हो
मौत की रक्खी हुई आगे मेरे तस्वीर हो ॥
मर कर भी मेरी जान पर जहमत बिला ताख़ीर हो
और गर्दन पर धरी जल्लाद ने शमशीर हो ॥
ख़ासकर मेरे लिये दोज़ख नया तामीर हो ।
अलग़रज़ जो कुछ हो मुमकिन वह मेरी तहक़ीर हो ॥
हो भयानक से भयानक भी मेरा आख़ीर हो ।
देश की सेवा ही लेकिन एक मेरो तकशीर हो॥
इस से बढ़ कर और दुनिया में अगर ताज़ीर हो
मंज़ूर हो! मंज़ूर हो!! मंज़ूर हो !!! मंज़ूर हो !!!!
मैं कहूंगा फिर भी अपने देश का शैदा हूँ मैं।
फिर करूंगा काम दुनिया में अगर पैदा हुआ॥
-रामप्रसाद बिस्मिल
[इस रचना का पूरा श्रेय शहीद रामप्रसाद बिस्मिल को जाता है]
Dr. Arpita Agrawal
23-Mar-2022 11:44 PM
ह्रदयस्पर्शी 👌
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